Sunday, January 30, 2011

शिक्षा

मैं किसी काम के सिलसिले में सरगुजा जिले के रामानुजगंज विकास खंड के एक ग्राम भुरई में गया था. मेरे साथ जो सहयोगी थे उन्हें पंचायत दफ्तर में काम था. वे वहां चले गये. मेरे सामने एक स्कूल था.मैंने  देखा की एक अधेड़ आदमी अपने दस -ग्यारह साल के बच्चे को साथ लिए स्कूल से बाहर निकल रहे थे. मैं उनके पास तक चला गया और पूछा , "आपका यह बच्चा कोनसी क्लास में पढ़ता है? "
" इस स्कूल में तो कक्षा चार में है मालिक."--उसने बताया तो मैं चौंक गया.
" इस स्कूल का मतलब "
" मतलब यह है मालिक की यह स्कूल आदिवासी विभाग का है. अभी खुला है, रेंजर साहब ने बताया की जाना जरूरी है,'नहीं तो पकड़ लेंगे.' एक स्कूल और भी है गाँव में, वहां इसका नाम पांचवीं में लिखा है पर मिशनरी वालों का स्कूल अच्छा है साहब वहां तो यह तीसरी क्लास में है. "
" तो इसका मतलब है की यह लड़का तीन-तीन स्कूलों में अलग अलग क्लासों में पड़ता है? " मैं लगभग हकला गया था और गिरते गिरते बचा था.
" हाँ मालिक."
" पर क्यों."
" क्या करें साहब, हमको तो सबकी बात माननी पड़ती है."
" सबसे अच्छा स्कूल कोनसा है."
" मिशनरीज वालों का साहब. "
"क्यों."
" वहां का दलिया अच्छा होता है, छोकरे का तबियत सुधर गया, जबसे वहां जाने लगा तो."---उसने बताया था.
उसकी बात समझ में आने वाली थी. शिक्षा का सीधा ताल्लुक रोटी के साथ होता है.

                                                                                     तेजिंदर की कहानी  

1 comment:

  1. वजह चाहे कोई भी हो..शिक्षा के लिए गाँव में भी बच्चों को विद्यालय भेजा जा रहहि..प्रगति की दिशा में ये पहले कदम है शायद...ये घटना अपनेमें विशेष है..शिक्षा रोटी से ही जुडी है..आज खुद का पेट भरने के लिए..तो कल दूसरों का भी पेट भरने का माध्यम बने के लिए ...धन्यवाद श्रीमान

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