Saturday, January 22, 2011

1946 में नेवी की बगावत --कांग्रेस नेताओं की प्रतिकिर्या पर------ शाहिर लुधयानवी

                                       ये किसका लहू है?
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम जरा
आँखें तो उठा नजरें तो मिला
कुछ हम भी सुने हमको भी बता
ये किसका लहू है कौन मरा  ?
 धरती  की सुलगती  छाती के  बेचैन   शरारे   पूछ्तें   हैं,
तुम लोग जिन्हें अपना न सके वो खून के धारे पूछते हैं,
सडकों की जबां चिल्लाती है,सागर के किनारे पूछते हैं,
ये किसका लहू है कौन मरा,
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,
वो कौन सा  जज्बा   था   जिससे   फर्सुदा  निजामे जीस्त हिला
झुलसे हुए वीरां गुलशन में इक आस उम्मीद का फूल खिला
जनता का लहू फौजों से मिला फौजों का लहू जनता से मिला
ये किसका लहू है कौन मरा,
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,
क्या कौमो वतन की जय गाकर मरते हुए रही गुंडे थे ?
जो देश का परचम लेके उठे वो शोख सिपाही गुंडे थे ?
जो बारे-गुलामी सह न सके वो मुजरिमे-शाही गुंडे थे ?
ये किसका लहू है कौन मरा,
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,
ऐ   अज्मे-फना   देने वालो ,  पैगामे - बका   देने वालो!
अब आग से कतराते क्यों हो, शोलों को हवा देने वालो!
तूफान से अब क्यों डरते हो,मौजों को सदा देने वालो!
क्या भूल गये अपना नारा?
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,
समझौते   की उम्मीद   सही,    अगियार  के वादे ठीक सही ,
हाँ मस्के सितम अफसाना सही, हाँ प्यार के वादे ठीक सही,
अपनों के कलेजे मत छेदो,      अगियार के वादे ठीक सही,
जनता से    यूँ दामन न     छुड़ा ,
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,
हम ठान चुके हैं अब जी में हर जालिम से टकरायेंगे ,
तुम समझौते की आस रखो ,हम आगे    बढ़ते जायेगें,
हर मंजिले-आजादी की कसम,हर मंजिल पर दोहराएंगे.
ये किसका लहू है कौन मरा,
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,

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