Monday, January 31, 2011

जाँ निसार अख्तर के कुछ शेर

शर्म आती है की इस शहर में हैं हम की जहाँ,
न मिले भीख तो लाखों का गुजारा ही न हो.

आज भी जैसे शाने पर तुम हाथ मेरे रख देती हो,
चलते चलते रुक जाता हूँ  साड़ी   की दुकानों पर.

सस्ते दामो तो ले आते लेकिन दिल था भर आया,
जाने किसका नाम लिखा था पीतल के गुलदानो पर.

न कोई ख्वाब न कोई खलिश न कोई खुमार,
ये   आदमी   तो   अधूरा   दिखाई   देता   है.

Sunday, January 30, 2011

शिक्षा

मैं किसी काम के सिलसिले में सरगुजा जिले के रामानुजगंज विकास खंड के एक ग्राम भुरई में गया था. मेरे साथ जो सहयोगी थे उन्हें पंचायत दफ्तर में काम था. वे वहां चले गये. मेरे सामने एक स्कूल था.मैंने  देखा की एक अधेड़ आदमी अपने दस -ग्यारह साल के बच्चे को साथ लिए स्कूल से बाहर निकल रहे थे. मैं उनके पास तक चला गया और पूछा , "आपका यह बच्चा कोनसी क्लास में पढ़ता है? "
" इस स्कूल में तो कक्षा चार में है मालिक."--उसने बताया तो मैं चौंक गया.
" इस स्कूल का मतलब "
" मतलब यह है मालिक की यह स्कूल आदिवासी विभाग का है. अभी खुला है, रेंजर साहब ने बताया की जाना जरूरी है,'नहीं तो पकड़ लेंगे.' एक स्कूल और भी है गाँव में, वहां इसका नाम पांचवीं में लिखा है पर मिशनरी वालों का स्कूल अच्छा है साहब वहां तो यह तीसरी क्लास में है. "
" तो इसका मतलब है की यह लड़का तीन-तीन स्कूलों में अलग अलग क्लासों में पड़ता है? " मैं लगभग हकला गया था और गिरते गिरते बचा था.
" हाँ मालिक."
" पर क्यों."
" क्या करें साहब, हमको तो सबकी बात माननी पड़ती है."
" सबसे अच्छा स्कूल कोनसा है."
" मिशनरीज वालों का साहब. "
"क्यों."
" वहां का दलिया अच्छा होता है, छोकरे का तबियत सुधर गया, जबसे वहां जाने लगा तो."---उसने बताया था.
उसकी बात समझ में आने वाली थी. शिक्षा का सीधा ताल्लुक रोटी के साथ होता है.

                                                                                     तेजिंदर की कहानी  

Friday, January 28, 2011

जिगर मुरादाबादी की शायरी

तुम मुझसे छूटकर रहे सबकी निगाह में,
मैं तुमसे छूटकर किसी काबिल नही रहा.

ये नाजे हुस्न तो देखो की दिल को तडपाकर,
नजर    मिलाते    नही,   मुस्कुराये   जाते     हैं.

इब्तिदा वो थी की था जीना मुहब्बत में मुहाल,
इंतिहा ये है की अब मरना भी मुश्किल हो गया.

अल्लाह रे     पाबंदी-ऐ-आदाबे       मुहब्बत,
गुलशन में रहे और गुलिस्तां नही     देखा.

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Saturday, January 22, 2011

1946 में नेवी की बगावत --कांग्रेस नेताओं की प्रतिकिर्या पर------ शाहिर लुधयानवी

                                       ये किसका लहू है?
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम जरा
आँखें तो उठा नजरें तो मिला
कुछ हम भी सुने हमको भी बता
ये किसका लहू है कौन मरा  ?
 धरती  की सुलगती  छाती के  बेचैन   शरारे   पूछ्तें   हैं,
तुम लोग जिन्हें अपना न सके वो खून के धारे पूछते हैं,
सडकों की जबां चिल्लाती है,सागर के किनारे पूछते हैं,
ये किसका लहू है कौन मरा,
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,
वो कौन सा  जज्बा   था   जिससे   फर्सुदा  निजामे जीस्त हिला
झुलसे हुए वीरां गुलशन में इक आस उम्मीद का फूल खिला
जनता का लहू फौजों से मिला फौजों का लहू जनता से मिला
ये किसका लहू है कौन मरा,
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,
क्या कौमो वतन की जय गाकर मरते हुए रही गुंडे थे ?
जो देश का परचम लेके उठे वो शोख सिपाही गुंडे थे ?
जो बारे-गुलामी सह न सके वो मुजरिमे-शाही गुंडे थे ?
ये किसका लहू है कौन मरा,
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,
ऐ   अज्मे-फना   देने वालो ,  पैगामे - बका   देने वालो!
अब आग से कतराते क्यों हो, शोलों को हवा देने वालो!
तूफान से अब क्यों डरते हो,मौजों को सदा देने वालो!
क्या भूल गये अपना नारा?
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,
समझौते   की उम्मीद   सही,    अगियार  के वादे ठीक सही ,
हाँ मस्के सितम अफसाना सही, हाँ प्यार के वादे ठीक सही,
अपनों के कलेजे मत छेदो,      अगियार के वादे ठीक सही,
जनता से    यूँ दामन न     छुड़ा ,
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,
हम ठान चुके हैं अब जी में हर जालिम से टकरायेंगे ,
तुम समझौते की आस रखो ,हम आगे    बढ़ते जायेगें,
हर मंजिले-आजादी की कसम,हर मंजिल पर दोहराएंगे.
ये किसका लहू है कौन मरा,
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,

Friday, January 21, 2011

आज की शायरा -------- हिना तैमूरी


हमने आपको आँखों में बसा रखा है,
आईना छोडिए आईने में क्या रखा है.

Thursday, January 20, 2011

पानी का खेल

एक बड़े नगर का भीडभाड वाला स्टेशन .
एक बंद लिफाफा स्टेशन अधिक्षक की तरफ बढ़ाते हुए उसने धीमी आवाज नें कहा --अग्रिम है साहब ....पुरे पांच हजार .....बाकि बाद में पहुंचा दूंगा....1 
" ठीक है, अब आप जाइये ...आपका काम हो जायेगा 1 " लिफाफा जेब के हवाले करते हुए स्टेशन अधिक्षक ने कहा.
वह स्टेशन अधिक्षक के कमरे से बहार निकलने के लिए मुडा, लेकिन पलभर को रुककर उसने कुछ याद दिलाने के लहजे में फिर कहा -" साहब टाइम याद है न.....ठीक बारह से तीन के बीच...क्योंकि इसी समय पांच छ एक्सप्रस ट्रेने एक साथ ......."
".....मैंने कहा न आप इत्मिनान रखिए...."
थैंक यु सर ....आपने तो पहले भी मदद की है...
दो घंटे बाद एक साथ कई एक्सप्रेस गाड़ियाँ एक साथ आकर खड़ी हो जाती हैं भीषण गर्मी के मारे प्यास से व्याकुल हो रहे यात्री हाथ में खाली बोतल डिब्बा लिए अफरा तफरी में एक नल से दुसरे नल पर दोड़ते रहे परन्तु एक बूंद पानी नही मिला १
तब देखते ही देखते भीड़ चाय -पान की दुकानों पर उमड़ पड़ी जहाँ मिनरल वाटर की हजारों बोतलें पड़ी थी. देखते ही देखते हजारों बोतलें पानी मुंह मांगी कीमतों पर बिक गया.
          कुछ देर बाद युवती एनाउंस कर रही थी की---विद्युत् आपूर्ति में बाधा हो जाने के कारण नलों में पानी सप्लाई नहीं हो सका...इससे यात्रियों को जो असुविधा हुई उसके लिए हमें खेद है.

                                                                                      रामयतन यादव की कहानी [ ज्ञानोदय ]

Tuesday, January 18, 2011

धोखे के आदी

जब से बन्दर और मगरमच्छ वाली घटना हुई है दोनों समुदाए बहुत दुखी हैं. बन्दर समुदाए इसलिए दुखी है की कोई मित्र इतना धोखेबाज कैसे हो सकता है. और मगर समुदाए इसलिए दुखी है की बदनाम भी हुए और मकसद भी हल नहीं हुआ. इस पर मगर समुदाए ने दुबारा कोशिश करने का फैसला किया. मगर समुदाए के तीन-चार सदस्य बंदरों के पास पहुंचे. उन्होंने बंदरों से कहा की एक मगर की गलती की सजा पुरे समुदाए को नहीं देनी चाहिए. हम दुबारा आपसे मित्रता के सम्बन्ध बनाना चाहते हैं. इसलिए आपको अपना एक प्रतिनिधि एक बार हमारी बस्ती में भेजना चाहिए. बन्दर समुदाए में इसका कड़ा विरोध हुआ. मगर समुदाए के प्रतिनिधिओं ने आंसू बहाना शुरू किया और एक मौका देने की विनती की. इस पर कुछ बंदरों ने एक मौका देने के लिए कहा. एक बूढ़े बन्दर ने कहा की इनके आंसुओं पर मत जाओ, हिंदी में " मगर के आंसू " वाली कहावत यूँ ही नहीं बनी है. परन्तु मगर मच्छों के बार बार कहने पर बंदरों ने एक मौका देने की बात मान ली. बंदरों ने एक जवान बन्दर को उनके साथ उनकी बस्ती में भेजने का फैसला कर लिया.सबने आपस में सलाह करके एक बन्दर को उनके साथ भेज दिया. और उसके हाथ में एक थैला दे दिया. मगर मच्छ उस बन्दर को लेकर अपनी बस्ती में पहुंचे. वहां जाते ही उनका व्यवहार बदल गया. उन्होंने उनके बेवकूफ होने का मजाक उड़ाया. और बन्दर को मरने के लिए तैयार होने को कहा. परन्तु बन्दर के मुंह पर कोई घबराहट नहीं थी. इस पर मगर मच्छों को बड़ा आश्चर्य हुआ. उन्होंने इसका कारण पूछा. तो बन्दर ने कहा की मेरे हाथ में यह थैली देख रहे हो. इसमें दुनिया का सबसे खतरनाक जहर है. मैं इस जहर को तुम्हारे तालाब में डाल दूंगा और तुम्हारा पूरा समुदाए पांच मिनिट में समाप्त हो जायेगा.अब तो मगर मच्छ बहुत घबराए और बन्दर से माफ़ी मांगने लगे. बन्दर ने कहा की पहले मुझे वापिस मेरे घर भेजो. और मगर समुदाए ने एक बार फिर मुंह की खाकर उसे वापिस भेज दिया. उसके बाद दोनों समुदायों के संबंध हमेशा के लिए समाप्त हो गये.

****** शक्ति संतुलन अपनी तरफ न हो तो धोखेबाज लोगों से काम नहीं करना चाहिए.*********

Sunday, January 16, 2011

दानवीर कर्ण

महाभारत में जहाँ कर्ण की शूरवीरता का वर्णन है वहीं उसकी दानवीरता का भी वर्णन है. उसके पास कोई याचंक आया तो खाली हाथ कभी नहीं गया. एक बार कर्ण स्नान कर रहे थे. उसी समय एक याचक ने आकर कुछ देने की याचना की. कर्ण स्नान करते हुए सोने की  कटोरी से अपने शरीर पर तेल लगा  रहे थे. उनका बायाँ हाथ कटोरी पर था. उन्होंने उसी हाथ से वह कटोरी उठा कर याचक को दे दी. इस पर याचक ने कहा की हे दानवीर कर्ण क्या आपको मालूम नहीं है की बाएं हाथ से दान नहीं देना चाहिए. इस पर कर्ण ने कहा की मुझे ये मालूम है परन्तु मैं जब तक अपने बाएं हाथ की जगह दायाँ हाथ इस्तेमाल करने की कोशिश करता तब तक इस मन का क्या भरोसा ये बदल नहीं जायेगा. कर्ण की बात सुनकर याचक हक्का बक्का रह गया . उसके मुंह से निकला की सच में तुम्हारे मुकाबले का दूसरा दानी दुनिया में नहीं है.

****** अच्छे काम काम का फैसला लेने के बाद ज्यादा सोच विचार उसे कमजोर करता है.*******

Saturday, January 15, 2011

अज्ञानी और मूर्ख का फर्क

एक बार महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ बैठे हुए थे. शिष्य उनसे अपने अपने मन में उठने वाले सवाल कर रहे थे. और महात्मा बुद्ध उनका जवाब दे रहे थे. अचानक ज्ञान की बात चल पड़ी. एक शिष्य ने कहा की कुछ लोग कितने मुर्ख होते हैं की कुछ भी नही जानते और पूरा जीवन यूँ ही गुजार देते हैं. इस पर महात्मा बुद्ध ने कहा की वो लोग मुर्ख नही अज्ञानी होते हैं. शिष्यों को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने पूछा की भगवन क्या अज्ञानी और मुर्ख में फर्क होता है. इस पर महात्मा बुद्ध ने उनकी शंका का समाधान करते हुए कहा की एक अज्ञानी व्यक्ति वह होता है जिसको ज्ञान का अभाव होता है, परन्तु मुर्ख वह होता है जो दूसरों को मुर्ख बनाता है और  इस पर यकीन भी करता है की वो मुर्ख बन रहा है.जब तुम किसी को मुर्ख बनाने की कोशिश करते हो तो वह इस बात को जानता होता है, परन्तु कई बार वह इसको प्रकट नही करता. सभी शिष्यों के मुख पर मुस्कान फ़ैल गई.

******* ऐसी मुर्खता हम कितनी बार करते हैं. **********

Friday, January 14, 2011

दोड़ प्रतियोगिता

एक बार जंगल के सभी जानवरों ने सोचा की पुराने समय की तरह एक बार फिर से कछुए और खरगोश की दोड़ करवानी चाहिए. उन्होंने पहले खरगोश से बात की. खरगोश झट से तैयार हो गया. उसने सोचा की यह अच्छा अवसर है जब वो अपने पूर्वजों की बेइज्जती का बदला ले सकता है. उसके बाद सभी जानवरों ने कछुए से बात की. परन्तु कछुए ने कोई उत्साह नहीं दिखाया. परन्तु जानवर इस बात पर अड़े हुए थे और उन्होंने प्रतियोगिता की तारीख घोषित कर दी. प्रतियोगिता के दिन खरगोश तैयार हो कर स्थल पर पहुंच गया. उसके बाद कुछ जानवर कछुए को भी घर से ले आए. ठीक समय पर सीटी बजी और खरगोश तेजी से भाग गया. कछुआ आराम से चलने लगा. सभी जानवर वहां से कई मील दूर जहाँ दोड़ खत्म होनी थी वहां पहुंच कर दोनों का इंतजार करने लगे. थोड़ी देर बाद खरगोश पसीने से लथपथ वहां पहुंच गया. उसके बाद सभी कछुए का इंतजार करने लगे. परन्तु कछुआ वहां नही पहुचा. शाम तक इंतजार करने के बाद सभी जानवर ये देखने के लिए की आखिर बात क्या है कछुए के घर पहुंचे. वहां देखा कछुआ घर के सामने चबूतरे पर बैठा आराम से चाय पी रहा है. जानवरों को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने दोड़ में भाग न लेने का कारण पूछा. कछुए ने कहा की निश्चित परिणाम मालूम होने के बावजूद उस प्रतियोगिता में भाग लेने की बजाए उसने कुछ दुसरे जरूरी काम निपटाना ठीक समझा. उसे अपने पूर्वजों की मेहनत पर पानी फेरने का क्या हक है? यह जवाब सुनकर सभी जानवर अपने अपने घर चले गये.

*******बड़े सपने देखना अच्छी बात है,परन्तु अव्यवहारिक लक्ष्य हमेशा निराशा पैदा करता है.सफलता के लिए हमेशा व्यावहारिक लक्ष्य सामने रखो और पूरी मेहनत से काम करो.****************

Thursday, January 13, 2011

घास का व्यापार

एक बार मुल्ला नसीरूदीन अपने गधों पर घास के गट्ठर लाद कर पडोस के राज्य में बेचने गया .उस राज्य के कस्टम अधिकारी बहुत सख्त थे.उन्होने सारे गट्ठर खोल कर अच्छी तरह जाँच की.फिर उसे जाने दिया. इस तरह हररोज मुल्ला नसीरूदीन अपने गधों पर घास के गट्ठर लाद कर वहां बेचने जाता. अधिकारी उसकी अच्छी तरह जाँच करते परन्तु उन्हें कुछ नही मिलता. इस तरह कई महीने गुजर गये. एक दिन परेशान हो कर उन अधिकारिओं ने मुल्ला से पूछा की मुल्ला, आप इन घास के गट्ठरों में क्या छुपाकर ले जाते हो जो  हमे आज तक नहीं मिला. मुल्ला नसीरूदीन ने जवाब दिया की मैं घास का नहीं, बल्कि गधों का व्यापार करता हूँ. तुम घास छानते रहते हो और मैं गधे बेचकर आ जाता हूँ.

***** बहुत बार चीजें वैसी नहीं होती जैसी पेश  की जाती हैं. इसलिए सचेत नागरिक को हुकुमत के फैसलों के पीछे छिपे असली कारण देख लेने चाहिएं.******

Wednesday, January 12, 2011

मुर्खता

एक जंगल में एक शेर रहता था.वह हररोज बहुत से जानवर मार देता था.इसलिए सभी जानवरों ने सलाह करके हररोज एक जानवर उसके पास भेजने का फैसला किया . और एक दिन खरगोश का नम्बर आया . खरगोश ने अपने पूर्वजों की कहानी सुनी हुई थी.वह देर से शेर के पास पहुंचा . शेर ने उससे देर से आने का कारण पूछा. तो खरगोश ने कहा की उसे एक दूसरा शेर मिल गया था, और वह बड़ी मुश्किल से यहाँ तक आया है . इसलिए आप एक बार चलकर उससे बात कर लीजिए . शेर बहुत जोर से हंसा और बोला क्या मुझे इतना मुर्ख समझता है . पुराणी कहानी मैंने भी सुनी हुई है . इतना कहकर शेर ने खरगोश को मारकर खा लिया .

 ****लक्ष्य सामने हो तो अपने प्रतिद्वंदी से उलझने की मुर्खता नहीं करनी चाहिए ****

परिस्थिति के अनुसार निर्णय

 एक बार एक कव्वा था. वह बहुत प्यासा था .तभी उसे एक बाग दिखाई दिया .उसमे एक घडा रखा था.कव्वे ने देखा की उसमे बहुत कम पानी है .कव्वा बहुत परेसान हुआ . तभी उसे अपने पूर्वजों की कथा याद आई .उसने आसपास देखा और पास में पड़े पत्थर उठा कर उसमे डालने लगा. जब बहुत से पत्थर डल गये तो उसने घड़े में झांककर देखा .घड़े में जो थोडा बहुत पानी था वह पत्थरों ने चूस लिया था. और अब उसमे थोडा भी पानी नहीं बचा था.कव्वा बहुत निरास हुआ और उसे अपने पूर्वजों पर बहुत गुस्सा आया .अंत में उसे प्यासा ही जाना पड़ा.

    *****   बिना परिस्थिति देखे पुराने फैसले लागु करना हानिकारक होता है *****