Monday, April 4, 2011

હું ક્યાં કહું છું આપની હા હોવી જોઈએ

આ મહોબત છે કે છે એની દયા કહેતા નથી
એક મુદ્દત થઇ કે તેઓ હા કે ના કહેતા નથી
બે જણા  દિલ થી મળે તો મજલીસ છે “મરીઝ “
દિલ વિના લાખો મળે એને સભા કહેતા નથી
હું ક્યાં કહું છું આપની હા હોવી  જોઈએ,
પણ ના કહો છો એમાં વ્યથા હોવી જોઈએ
પુરતો નથી નસીબ નો  આનંદ ઓ ખુદા,
મરજી મુજબની થોડી મજા હોવી જોઈએ
એવી બે-દિલી થી મને માફ ના કરો,
હું ખુદ કહી ઉઠું કે સજા હોવી જોઈએ
મેં એનો પ્રેમ ચાહ્યો બહુ સાદી રીત થી,
નહોતી ખબર કે એમાં કલા હોવી જોઈએ
પૃથ્વી ની આ વિશાળતા અમથી નથી ‘મરીઝ’
એના મિલન ની ક્યાંક જગા હોવી જોઈએ
- “મરીઝ”

Saturday, March 26, 2011

क्षमता

ओ                             
निष्ठुर प्रकृति 
अट्टहास न कर
अपनी संहार की क्षमता पर 
नही जीत पायेगी तू
मनुष्य से 
भयंकर भूकम्प 
विनाशकारी बाढ़ 
कभी ज्वालामुखी 
कभी तूफ़ान
लेकिन क्या हुआ,
जापान में क्या तू पहुंच पाई
उस संख्या तक 
जो मनुष्य ने बनाई थी 
हिरोशिमा और नागाशाकी में 
हर साल तू लाती है बाढ़
परन्तु उससे ज्यादा मार देता है मनुष्य 
अनाज को गोदामों में दबाकर
भूख से
पूरी सदी में 
जितने मारे तूने 
अपने सारे कारनामो से 
उससे ज्यादा तो मनुष्य ने मार दिए 
इराक पर दवाइयों के प्रतिबंध से
तू समझती है 
भयंकर बिमारिओं से 
तूने मारे लाखों लोग 
हा हा हा 
बहुत भोली है तू 
उन्हें मनुष्य ने मारा 
उनको दवाइयों की पहुंच से बाहर करके 
तू कितनी ही कोशिश कर 
तू 
मुकाबला नही कर सकती मनुष्य की क्षमता का 
हर रोज मार रहा है मनुष्य
हजारों को 
कभी धर्म 
कभी जाती 
कभी लोकतंत्र की स्थापना के नाम पर 
ये खामोश मोतें 
जो किसी गिनती में नही हैं

Thursday, March 17, 2011

हम --[एक निरंतर कविता ]

गणतन्त्र दिवस हम फिर मना रहे हैं ,
बंधुवा लोगों को आजाद   बता रहे हैं,

हक  मांगने  वालों पर गोली चलाई हमने,
मरहम लगा कर हम ही शाबाशी पा रहे हैं.

जनता की हालत क्या है, मालूम नही है हमको,
विकाश   बहुत  किया  है,  कागज  बता  रहे  हैं.

कानून  और  व्यवस्था  की  स्थिति ठीक है,
गली गली  में  फिर से  कर्फ्यू  लगा  रहे  हैं.

भगत सिंह हो  या गाँधी,  नासमझ  थे   सारे,
उन्होंने जिन्हें भगाया, उन्हें वापिस ला रहे हैं.

हम वीरों के वारिश हैं और ऋषियों की सन्तान हैं,
कहीं  बेटियां  मार रहे हैं,  कहीं  बहुएं  जला रहे हैं.

सारी दुनिया हमारी  ऋणी  थी, है  और रहेगी,
इसलिए  धन  विदेशों  में  जमा  करा  रहे  हैं.

हमारा मुकाबला कोई कर ही नही सकता,
सोलहवीं  सदी  से  इक्कीसवीं में जा रहे हैं.




Saturday, March 12, 2011

नो फ्लाई ज़ोन

गिद्धों के राजा ने 
जारी किया है फरमान 
की अबसे 
कुछ पक्षिओं के आकाश में उड़ने पर 
पाबंदी रहेगी !
क्योंकि 
उनके आकाश में उड़ने से 
असुविधा होती है
साँपों को 
उनका शिकार करने में,
साँपों के साथ 
समझौता है उनका
और फिर कुछ दिन
साँपों को सुविधा हो गयी 
शिकार की,
परन्तु 
थोड़े दिन के बाद 
फिर घटने लगी
साँपों की संख्या 
साँपों की पंचायत के मुखिया ने
बैठाई है जाँच
और इस जाँच में 
गिद्धों पर शक करने की मनाही है
कुछ सांप 
जो खाते हैं 
छोटे साँपों को 
वो भी 
जाँच के दायरे से बाहर हैं
और हम 
इंतजार कर रहे हैं
उस दिन का 
जब इन पक्षियों में से कुछ 
बाज बन जाएँ 
और 
चुनौती दें
मरे हुए ढोरों पर पलने वाले 
गिद्धों को 
ताकि
फिर किसी खुले आसमान को 
साँपों की सुविधा के लिए 
'' नो फ्लाई ज़ोन ''
न बनाया जा सके !

























Monday, March 7, 2011

शाहिर लुधियानवी की जयंती पर

     शाहिर की शायरी --खून फिर खून है!

जुल्म फिर जुल्म है, बढ़ता है तो मिट जाता है 
खून  फिर  खून  है,  टपकेगा तो जम जायेगा 

खाक -ए-सहरा पे जमे या कफे कातिल पे जमे,
रू-ए-इंसाफ   पे  या   पाए-सलासिल    पे जमे,
तेगे-बेदाद   पे  या  लाशा -ए-बिस्मिल  पे जमे,
खून  फिर  खून  है,  टपकेगा तो जम जायेगा

लाख  बैठे  कोई  छुप छुप  के  कमींगाहों में ,
खून खुद देता है जल्लादों के मस्कन का सुराग,
साजिशें लाख ओढाती रहें जुल्मत की नकाब,
लेके  हर बूंद  निकलती  है  हथेली  पे  चिराग. 

जुल्म की किस्मते-नाकारा-ओ-रुसवा से कहो,
जब्र  की  हिकमते-पुरकार  के  ईमा  से  कहो,
महमिले-मजलिसे-अकवाम की लैला से कहो,
खून  दीवाना  है  दामन  पे  लपक  सकता  है,
शोला-ए-तुंद है खिरमन पे लपक सकता है.

तुमने जिस खून को मकतल में दबाना चाहा,
आज वो कूचा-ए-बाजार में आ निकला है,
कहीं शोला कहीं नारा कहीं पत्थर बन कर,
खून  चलता है तो रुकता नहीं संगीनों से,
सर  उठता  है  तो  दबता  नहीं  आइनों  से.

जुल्म की बात ही क्या,जुल्म की औकात ही क्या,
जुल्म बस जुल्म है, आगाज से अंजाम तलक ,
खून फिर  खून  है  सो  शक्ल  बदल  सकता  है,
ऐसी  शक्लें  की  मिटाओ  तो  मिटाए  न  बने ,
ऐसे  शोले  की  बुझाओ  तो  बुझाए  न    बने,
ऐसे   नारे   की  दबावों  तो   दबाये    न   बने.





Friday, February 25, 2011

भोर के स्वागत की तैयारी करो--6

                                    जीवन छोटी-छोटी चीजों से बनता है !   
                 यह एक वैज्ञानिक सत्य है की पूरी दुनिया छोटे छोटे अणुओं से मिलकर बनी है ! दनिया की हर वस्तु अलग अलग किस्म के छोटे छोटे अणुओं से मिलकर बनी है ! परन्तु इसमें इन अणुओं का एक निश्चित अनुपात होता है ! पानी के लिए hydrogen के दो और oxygen का एक अणु होना जरूरी है ! अगर यह अनुपात बदलता है तो दूसरा कुछ भी बने परन्तु पानी नही बन सकता ! इसी तरह मनुष्य का जीवन भी छोटी -छोटी बातों और विचारों से मिलकर बनता है ! मनुष्य के जीवन में होने वाली हर घटना, सफलता असफलता इन्ही छोटी -छोटी चीजों के मेल पर निर्भर करती हैं ! जहाँ इन चीजों का संतुलन बिगड़ा, उनके परिणाम भी बदल जाते हैं !
                    मनुष्य कई बार कामयाबी के लिए बड़े बड़े मैनेजमेंट गुरुओं की किताबें पड़ता है, उनके सेमिनार सुनता है  और उनकी कही हुई  बड़ी बड़ी बातों को लागु करने की कोशिश करता है , परन्तु उसे वह परिणाम नही मिलते जिनकी वह उम्मीद करता है ! होता यह है की वह बड़ी चीजों का तो ध्यान रखता है, परन्तु छोटी चीजों को नजरंदाज क्र देता है ! इससे उसका सारा रासायनिक संतुलन बिगड़ जाता है और परिणाम स्वरूप कुछ दूसरी ही चीज सामने आती है ! जीवन छोटी छोटी चीजों से मिलकर बना है, और सामान्य बातें जीवन में सबसे ज्यादा महत्व रखती हैं ! मनुष्य को अपने सहयोगियों के साथ सम्मान पूर्वक व्यवहार करना चाहिए, उसे बेईमानी से दूर रहना चाहिए, अपना प्राथमिकतायें तय करनी चाहियें, फैसलों  को लागु करना चाहिए, मेहनत करनी चाहिए, ये सब सामान्य बातें हैं जिन्हें हर आदमी जानता है, परन्तु इनकी कमी ही उसका संतुलन बिगाडती है जिन्हें वह समझ ही नही पाता ! जिस तरह दुनिया रासायनिक रूप से निश्चित अणुओं के निश्चित अनुपात पर बनी हुई है , उसी तरह मनुष्य का जीवन भी घटनाओं और विचारों के निश्चित अनुपात पर टिका हुआ है ! कामयाबी के लिए छोटी छोटी बातों पर ध्यान दीजिये , बड़े परिणाम इन्ही चीजों के योग पर निर्भर करते हैं !

Friday, February 18, 2011

भोर के स्वागत की तैयारी करो--5

                                          सकारात्मक  सोच कोल्ड स्टोरेज की तरह होती है !

                        जब कोई बीज जमीन पर डाला जाता है तो जरूरी नही होता की वह अंकुरित हो ! वह बीज बिना अंकुरित हुए ही नष्ट हो सकता है ! क्योंकि बीज को अंकुरित होने के लिए कई चीजें चाहिए ! इसमें सबसे जरूरी चीज है मौसम !
                                             धीरे  धीरे  रे  मना ,धीरे  ही  सब  होए ,
                                              माली सींचे सो घड़ा, रुत आये फल होए !
                            इसलिए माली भले सो घड़ा पानी डाले लेकिन फल तो रुत (मौसम ) आने पर ही लगता है ! बीज को अंकुरित होने के लिए अनुकूल मौसम के दूसरी भी भुत सी चीजों की जरूरत होती है , मिट्टी, पानी, हवा और धुप वगैरा ! इसलिए जब तक सब चीजें उसके अनुकूल नही होती , तब तक किसान उस बीज को सम्भालकर रखता है !
जल्दी खराब होने वाले बीजों को कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है !
                              इसी तरह मनुष्य जब अपने कार्यक्रमों को लागु करने की कोशिश करता है तो  बहुत बार हालात उसके अनुकूल नही होते ! इसलिए उस काम को हालात के अनुकूल होने तक बचाकर रखना सबसे जरूरी होता है ! वरना वह विचार समाप्त हो जाता है ! और इस के लिए सकारात्मक सोच कोल्ड स्टोरेज का काम करती है ! निराशा विचार को मार देती है, हालात अनुकूल होने तक विचार ही नही बचता ! इसीलिए सकारात्मक सोच पर इतनी किताबें लिखी गयी हैं !
                                  अगर आज हालात आपके अनुकूल नही हैं तो अपने विचार, अपने कार्यक्रम को मरने मत दीजिये ! उसे सही समय के लिए बचाकर रखिये ! हर काम हर समय हो ही जाये यह कोई जरूरी नही होता, परन्तु अगर आपने उसे बचाकर नही रख्खा तो वह कभी भी नही होगा !

Wednesday, February 16, 2011

भोर के स्वागत की तैयारी करो--4

अनुशासन हीन मनुष्य कटी हुई पतंग की तरह होता है !
मनुष्य की कामयाबी के लिए एक अच्छी प्लानिंग और दूसरी कई चीजों की जरूरत होती है ! इसमें एक चीज जो सबसे जरूरी होती है, वह है अनुशासन ! एक पुराणी कहावत है की ज्यादातर लड़ाईयां बिना लड़े हारी जाती हैं , उसी तरह ज्यादातर अच्छी प्लानिंग बिना लागू किये असफल हुई हैं !अनुशासन का मतलब केवल समय पर उठना या समय पर ऑफिस जाना नही होता, अनुशासन का मतलब लिए हुए फैंसले समय पर लागू करना होता है ! कई मनुष्य प्लानिंग के मामले में बहुत तेज होतें हैं, परन्तु अनुशासन के अभाव में उन्हें लागू नही कर पाते और इसलिए असफल हो जातें हैं ! ऐसे मनुष्य कटी हुई पतंग की तरह होते हैं , जो उडती तो जरुर है परन्तु कहाँ पहुंचेगी किसी को नही मालूम होता ! मनुष्य का जो जोश प्लानिंग करने में दिखाई देता है, उसका आधा भी अगर उसके लागू करने में दिखाई दे तो कामयाबी उसके सामने चलकर आती है ! मेहनत को भी अगर अनुशासन हीन तरीके से किया जाये तो उसका भी कोई मतलब नही रह जाता ! इसलिए अनुशासन कामयाबी के लिए जरूरी तीन आधारभूत चीजों में से एक चीज है !

Sunday, February 13, 2011

फैज अहमद फैज की बरसी पर छोटी सी श्रद्धांजली !

यूँ ही उलझती रही है हमेशा जुल्म से खल्क,
                                  न उनकी रस्म नई है न अपनी रीत नई !
यूँ ही खिलाये हैं हमने हमेशा आग में फूल,
                                   न उनकी हार नई है न अपनी जीत नई !

       इन शब्दों के रचयिता और महान क्रन्तिकारी शायर फैज अहमद फैज को उनकी बरसी पर छोटी सी श्रद्धांजली !

मिश्र  की घटनाओं ने फिर फैज  को सही साबित किया ! फैज ने कभी भी भारत और पाकिस्तान के बंटवारे को स्वीकार नही किया! वह इसे साम्राज्यवादी और साम्प्रदायिक ताकतों की साजिश मानते थे ! बंटवारे के बाद सालों पाकिस्तान की जेलों में रहे !

Wednesday, February 9, 2011

भोर के स्वागत की तैयारी करो--3

----जो सही नही है, वह निश्चित रूप से गलत है !---------

                मनुष्य जब भी कोई काम करता है, यहाँ तक की अपराध भी करता है तो उससे पहले वह अपने मन को उसकी जरूरत के लिए समझा लेता है ! बिना मन को समझाय कोई भी काम करना मुश्किल होता है ! यह काम मनुष्य तब भी करता है जब वह अपनी गलतियों और कमजोरियों को छुपाता है ! मनुष्य अपनी कमजोरियों को मजबूरी या किसी दूसरी शक्ल में वाजिब ठहराता है ! यहीं से उसके असफल होने की शुरुआत हो जाती है !
                 कोई भी मनुष्य बिना कमजोरियों के नही होता ! लेकिन कामयाब लोग अपनी कमजोरियों को पहचान कर उन्हें दूर कर लेते हैं, और नाकामयाब लोग उनके लिए बहाने ढूंढ़ लेते हैं ! एक बात आदमी को हमेशा याद रखनी चाहिए की" जो सही नही है वह निश्चित रूप से गलत है " ! कोई बीच का रास्ता नही होता ! जब तक मनुष्य अपनी कमजोरियों को पहचान कर ये नही मान लेता की यह कमजोरी है, वह कभी भी उसको दूर नही कर सकता ! इसलिए मनुष्य को कामयाब होने के लिए निर्मम आत्मालोचना  करनी चाहिए ! जो मनुष्य यह कर सकता है,  दुनिया की कोई भी ताकत उसको असफल नही कर सकती !
                 यह कामयाबी का पहला कदम है !

Monday, February 7, 2011

दाग देहलवी की शायरी

रात दिन नामा-ओ -पैगाम कहाँ तक होगा,
साफ कह दीजीय मिलना हमे मंजूर नही  !

गजब किया तेरे वादे पे एतबार किया ,
तमाम रात कयामत का इंतजार किया !

लूटेंगी वो निगाहें हर कारवां दिल का ,
जब तक चलेगा रस्ता ये रहजनी रहेगी !

कुछ जहर न थी शराबे अंगूर ,
क्या चीज हराम हो गई है !

उनसे कह दी है आरजू दिल की,
अब मेरी बात का जवाब कहाँ !

भोर के स्वागत की तैयारी करो--2

-------प्रेम एक शाश्वत मुल्य है !--------
एक बार महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ बैठे हुए थे ! बात चल रही थी की मनुष्य के संत होने और देवता होने की प्रकिर्या कैसे बनती है ! यह कैसे माना जाये की यह आदमी संत हो गया है या देवता की श्रेणी में पहुंच गया है! इस पर महात्मा बुद्ध ने जवाब दिया की जीवन में प्रेम एक शाश्वत मूल्य होता है ! जब मनुष्य के प्रेम के दायरे में सभी लोग आ जातें हैं, भले ही किसी जाती, धर्म,स्थान और नस्ल से सम्बन्ध रखते हों तो आदमी संत की श्रेणी में आ जाता है, और जब दुश्मन भी उसके प्रेम के दायरे में आ जातें हैं तो आदमी देवता की श्रेणी में आ जाता है !
                                      कितना सटीक उत्तर दिया महात्मा बुद्ध ने ! आज हजारों लोग अपने नाम के आगे संत शब्द का इस्तेमाल करते हैं ! परन्तु क्या उनका आचरण संत के लायक है ? उनके अनुयायियों को छोडकर बाकि लोगों की राय उनके बारे में कैसी होती है ? इसी तरह सामाजिक और आर्थिक व्यवहार में बेईमान आदमी चाहे कितने मन्दिरों का चक्कर लगा ले या कितने सत्संग घूम ले वह कभी भी अपने स्तर से उपर नही उठ सकता ! मानव जीवन का उद्देश्य मूल्यों का संचय करना होता है और एक आदमी यह कहकर की बिजनस की बात अलग है अपने व्यक्तित्व के दो हिस्से नही कर सकता ! मूल्यों का संचय एक लगातार और विचार और आचरण से जुडा हुआ कार्य है इसे हिस्सों में नही बांटा जा सकता !इसलिय आदमी को मुश्किल समय में भी बिज़नस के स्थापित सिद्धांतो को नही छोड़ना चाहिए !उसका सही आचरण ही उसको मुश्किलों से निकालेगा और उसके व्यवहार से ही उसको सहायता मिलेगी !समय गुजर जाता है लेकिन नैतिक पतन से उबरना बहुत मुश्किल होता है !

Friday, February 4, 2011

भोर के स्वागत की तैयारी करो

----"सफल न होने के हजार कारण हो सकते हैं, परन्तु असफल होने का एक ही कारण होता है, छोड़ देना !"-------

                             एक आदमी किसी काम के लिए मेहनत करता है, परन्तु उसे वांछित सफलता नही मिलती. इसलिए हम उसके बारे में कह सकते हैं की वो अब तक कामयाब नही हुआ. सफल न होना और असफल हो जाना दो अलग अलग चीजें हैं.                                                                              जब कोई वैज्ञानिक किसी खोज में लगा होता है तो हो सकता है की वह सालों तक कामयाब न हो. तब तक उसे कोई नही जानता परन्तु एक दिन जब वह कामयाब हो जाता है तो उसी दिन सारी दुनिया उसे जान जाती है. अगर वह कामयाब होने से कुछ दिन पहले थक कर छोड़ देता तो जरुर असफल हो जाता.
                              दुसरे शब्दों में आप इसे इस तरह कह सकते हैं की जैसे कोई आदमी हथौड़े से किसी पत्थर को तोड़ने की कोशिश कर रहा होता है परन्तु किस चोट के बाद पत्थर टूटने वाला है उसे नही पता होता, अगर वह अपनी कोशिश बीच में ही छोड़ देता है तो हो सकता है की उससे अगली ही चोट में पत्थर टूटना होता. लोग अक्सर सफलता के बहुत नजदीक अपनी कोशिश छोड़ देतें हैं, और असफल कहलातें हैं.
                               इसलिए कभी भी " छोडिये मत "!  सफल होने के तरीके उसके बाद शुरू होतें हैं.

Wednesday, February 2, 2011

राम मेश्राम की कविता ----कक्का जी

           कक्का जी
जागा बचपन मेरे अंदर कक्का जी,
हरा समन्दर,गोपी चन्दर कक्का जी.

उल्ट -पलट शतरंज सियासत की करके,
माया के घर लुटा मछन्दर कक्का जी.

कहा-सुना, देखा उस दिन से सकते में,
गाँधी जी के तीनो बन्दर कक्का जी.

काला जादू है चुनाव की पुडिया में,
जनता का हर दुःख छू मन्तर कक्का जी.

भरता नही हरगिज अमा कुछ भी कर लो,
बहुत बड़ा सुराख़ मुकद्दर कक्का जी.

लोकतंत्र की ऐसी तैसी कर डाली,
हमसे बढकर  कौन धुरंधर कक्का जी.

बना दिया कुछ रोटी ने कुछ किस्मत ने,
अच्छे अच्छों को घनचक्कर कक्का जी.

रोज आपको दुनिया कब तक करे सलाम,
आप कहाँ के शाह सिकन्दर कक्का जी.

सारी उम्र 'सिफर' पूजा का तोहफा है,
रोज मुकद्दर देता टक्कर कक्का जी.

हुआ आज तक यही,यही सब कल होगा,
कहे दमादम मस्त कलंदर कक्का जी.



Monday, January 31, 2011

जाँ निसार अख्तर के कुछ शेर

शर्म आती है की इस शहर में हैं हम की जहाँ,
न मिले भीख तो लाखों का गुजारा ही न हो.

आज भी जैसे शाने पर तुम हाथ मेरे रख देती हो,
चलते चलते रुक जाता हूँ  साड़ी   की दुकानों पर.

सस्ते दामो तो ले आते लेकिन दिल था भर आया,
जाने किसका नाम लिखा था पीतल के गुलदानो पर.

न कोई ख्वाब न कोई खलिश न कोई खुमार,
ये   आदमी   तो   अधूरा   दिखाई   देता   है.

Sunday, January 30, 2011

शिक्षा

मैं किसी काम के सिलसिले में सरगुजा जिले के रामानुजगंज विकास खंड के एक ग्राम भुरई में गया था. मेरे साथ जो सहयोगी थे उन्हें पंचायत दफ्तर में काम था. वे वहां चले गये. मेरे सामने एक स्कूल था.मैंने  देखा की एक अधेड़ आदमी अपने दस -ग्यारह साल के बच्चे को साथ लिए स्कूल से बाहर निकल रहे थे. मैं उनके पास तक चला गया और पूछा , "आपका यह बच्चा कोनसी क्लास में पढ़ता है? "
" इस स्कूल में तो कक्षा चार में है मालिक."--उसने बताया तो मैं चौंक गया.
" इस स्कूल का मतलब "
" मतलब यह है मालिक की यह स्कूल आदिवासी विभाग का है. अभी खुला है, रेंजर साहब ने बताया की जाना जरूरी है,'नहीं तो पकड़ लेंगे.' एक स्कूल और भी है गाँव में, वहां इसका नाम पांचवीं में लिखा है पर मिशनरी वालों का स्कूल अच्छा है साहब वहां तो यह तीसरी क्लास में है. "
" तो इसका मतलब है की यह लड़का तीन-तीन स्कूलों में अलग अलग क्लासों में पड़ता है? " मैं लगभग हकला गया था और गिरते गिरते बचा था.
" हाँ मालिक."
" पर क्यों."
" क्या करें साहब, हमको तो सबकी बात माननी पड़ती है."
" सबसे अच्छा स्कूल कोनसा है."
" मिशनरीज वालों का साहब. "
"क्यों."
" वहां का दलिया अच्छा होता है, छोकरे का तबियत सुधर गया, जबसे वहां जाने लगा तो."---उसने बताया था.
उसकी बात समझ में आने वाली थी. शिक्षा का सीधा ताल्लुक रोटी के साथ होता है.

                                                                                     तेजिंदर की कहानी  

Friday, January 28, 2011

जिगर मुरादाबादी की शायरी

तुम मुझसे छूटकर रहे सबकी निगाह में,
मैं तुमसे छूटकर किसी काबिल नही रहा.

ये नाजे हुस्न तो देखो की दिल को तडपाकर,
नजर    मिलाते    नही,   मुस्कुराये   जाते     हैं.

इब्तिदा वो थी की था जीना मुहब्बत में मुहाल,
इंतिहा ये है की अब मरना भी मुश्किल हो गया.

अल्लाह रे     पाबंदी-ऐ-आदाबे       मुहब्बत,
गुलशन में रहे और गुलिस्तां नही     देखा.

.

Saturday, January 22, 2011

1946 में नेवी की बगावत --कांग्रेस नेताओं की प्रतिकिर्या पर------ शाहिर लुधयानवी

                                       ये किसका लहू है?
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम जरा
आँखें तो उठा नजरें तो मिला
कुछ हम भी सुने हमको भी बता
ये किसका लहू है कौन मरा  ?
 धरती  की सुलगती  छाती के  बेचैन   शरारे   पूछ्तें   हैं,
तुम लोग जिन्हें अपना न सके वो खून के धारे पूछते हैं,
सडकों की जबां चिल्लाती है,सागर के किनारे पूछते हैं,
ये किसका लहू है कौन मरा,
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,
वो कौन सा  जज्बा   था   जिससे   फर्सुदा  निजामे जीस्त हिला
झुलसे हुए वीरां गुलशन में इक आस उम्मीद का फूल खिला
जनता का लहू फौजों से मिला फौजों का लहू जनता से मिला
ये किसका लहू है कौन मरा,
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,
क्या कौमो वतन की जय गाकर मरते हुए रही गुंडे थे ?
जो देश का परचम लेके उठे वो शोख सिपाही गुंडे थे ?
जो बारे-गुलामी सह न सके वो मुजरिमे-शाही गुंडे थे ?
ये किसका लहू है कौन मरा,
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,
ऐ   अज्मे-फना   देने वालो ,  पैगामे - बका   देने वालो!
अब आग से कतराते क्यों हो, शोलों को हवा देने वालो!
तूफान से अब क्यों डरते हो,मौजों को सदा देने वालो!
क्या भूल गये अपना नारा?
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,
समझौते   की उम्मीद   सही,    अगियार  के वादे ठीक सही ,
हाँ मस्के सितम अफसाना सही, हाँ प्यार के वादे ठीक सही,
अपनों के कलेजे मत छेदो,      अगियार के वादे ठीक सही,
जनता से    यूँ दामन न     छुड़ा ,
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,
हम ठान चुके हैं अब जी में हर जालिम से टकरायेंगे ,
तुम समझौते की आस रखो ,हम आगे    बढ़ते जायेगें,
हर मंजिले-आजादी की कसम,हर मंजिल पर दोहराएंगे.
ये किसका लहू है कौन मरा,
 ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा,

Friday, January 21, 2011

आज की शायरा -------- हिना तैमूरी


हमने आपको आँखों में बसा रखा है,
आईना छोडिए आईने में क्या रखा है.

Thursday, January 20, 2011

पानी का खेल

एक बड़े नगर का भीडभाड वाला स्टेशन .
एक बंद लिफाफा स्टेशन अधिक्षक की तरफ बढ़ाते हुए उसने धीमी आवाज नें कहा --अग्रिम है साहब ....पुरे पांच हजार .....बाकि बाद में पहुंचा दूंगा....1 
" ठीक है, अब आप जाइये ...आपका काम हो जायेगा 1 " लिफाफा जेब के हवाले करते हुए स्टेशन अधिक्षक ने कहा.
वह स्टेशन अधिक्षक के कमरे से बहार निकलने के लिए मुडा, लेकिन पलभर को रुककर उसने कुछ याद दिलाने के लहजे में फिर कहा -" साहब टाइम याद है न.....ठीक बारह से तीन के बीच...क्योंकि इसी समय पांच छ एक्सप्रस ट्रेने एक साथ ......."
".....मैंने कहा न आप इत्मिनान रखिए...."
थैंक यु सर ....आपने तो पहले भी मदद की है...
दो घंटे बाद एक साथ कई एक्सप्रेस गाड़ियाँ एक साथ आकर खड़ी हो जाती हैं भीषण गर्मी के मारे प्यास से व्याकुल हो रहे यात्री हाथ में खाली बोतल डिब्बा लिए अफरा तफरी में एक नल से दुसरे नल पर दोड़ते रहे परन्तु एक बूंद पानी नही मिला १
तब देखते ही देखते भीड़ चाय -पान की दुकानों पर उमड़ पड़ी जहाँ मिनरल वाटर की हजारों बोतलें पड़ी थी. देखते ही देखते हजारों बोतलें पानी मुंह मांगी कीमतों पर बिक गया.
          कुछ देर बाद युवती एनाउंस कर रही थी की---विद्युत् आपूर्ति में बाधा हो जाने के कारण नलों में पानी सप्लाई नहीं हो सका...इससे यात्रियों को जो असुविधा हुई उसके लिए हमें खेद है.

                                                                                      रामयतन यादव की कहानी [ ज्ञानोदय ]

Tuesday, January 18, 2011

धोखे के आदी

जब से बन्दर और मगरमच्छ वाली घटना हुई है दोनों समुदाए बहुत दुखी हैं. बन्दर समुदाए इसलिए दुखी है की कोई मित्र इतना धोखेबाज कैसे हो सकता है. और मगर समुदाए इसलिए दुखी है की बदनाम भी हुए और मकसद भी हल नहीं हुआ. इस पर मगर समुदाए ने दुबारा कोशिश करने का फैसला किया. मगर समुदाए के तीन-चार सदस्य बंदरों के पास पहुंचे. उन्होंने बंदरों से कहा की एक मगर की गलती की सजा पुरे समुदाए को नहीं देनी चाहिए. हम दुबारा आपसे मित्रता के सम्बन्ध बनाना चाहते हैं. इसलिए आपको अपना एक प्रतिनिधि एक बार हमारी बस्ती में भेजना चाहिए. बन्दर समुदाए में इसका कड़ा विरोध हुआ. मगर समुदाए के प्रतिनिधिओं ने आंसू बहाना शुरू किया और एक मौका देने की विनती की. इस पर कुछ बंदरों ने एक मौका देने के लिए कहा. एक बूढ़े बन्दर ने कहा की इनके आंसुओं पर मत जाओ, हिंदी में " मगर के आंसू " वाली कहावत यूँ ही नहीं बनी है. परन्तु मगर मच्छों के बार बार कहने पर बंदरों ने एक मौका देने की बात मान ली. बंदरों ने एक जवान बन्दर को उनके साथ उनकी बस्ती में भेजने का फैसला कर लिया.सबने आपस में सलाह करके एक बन्दर को उनके साथ भेज दिया. और उसके हाथ में एक थैला दे दिया. मगर मच्छ उस बन्दर को लेकर अपनी बस्ती में पहुंचे. वहां जाते ही उनका व्यवहार बदल गया. उन्होंने उनके बेवकूफ होने का मजाक उड़ाया. और बन्दर को मरने के लिए तैयार होने को कहा. परन्तु बन्दर के मुंह पर कोई घबराहट नहीं थी. इस पर मगर मच्छों को बड़ा आश्चर्य हुआ. उन्होंने इसका कारण पूछा. तो बन्दर ने कहा की मेरे हाथ में यह थैली देख रहे हो. इसमें दुनिया का सबसे खतरनाक जहर है. मैं इस जहर को तुम्हारे तालाब में डाल दूंगा और तुम्हारा पूरा समुदाए पांच मिनिट में समाप्त हो जायेगा.अब तो मगर मच्छ बहुत घबराए और बन्दर से माफ़ी मांगने लगे. बन्दर ने कहा की पहले मुझे वापिस मेरे घर भेजो. और मगर समुदाए ने एक बार फिर मुंह की खाकर उसे वापिस भेज दिया. उसके बाद दोनों समुदायों के संबंध हमेशा के लिए समाप्त हो गये.

****** शक्ति संतुलन अपनी तरफ न हो तो धोखेबाज लोगों से काम नहीं करना चाहिए.*********

Sunday, January 16, 2011

दानवीर कर्ण

महाभारत में जहाँ कर्ण की शूरवीरता का वर्णन है वहीं उसकी दानवीरता का भी वर्णन है. उसके पास कोई याचंक आया तो खाली हाथ कभी नहीं गया. एक बार कर्ण स्नान कर रहे थे. उसी समय एक याचक ने आकर कुछ देने की याचना की. कर्ण स्नान करते हुए सोने की  कटोरी से अपने शरीर पर तेल लगा  रहे थे. उनका बायाँ हाथ कटोरी पर था. उन्होंने उसी हाथ से वह कटोरी उठा कर याचक को दे दी. इस पर याचक ने कहा की हे दानवीर कर्ण क्या आपको मालूम नहीं है की बाएं हाथ से दान नहीं देना चाहिए. इस पर कर्ण ने कहा की मुझे ये मालूम है परन्तु मैं जब तक अपने बाएं हाथ की जगह दायाँ हाथ इस्तेमाल करने की कोशिश करता तब तक इस मन का क्या भरोसा ये बदल नहीं जायेगा. कर्ण की बात सुनकर याचक हक्का बक्का रह गया . उसके मुंह से निकला की सच में तुम्हारे मुकाबले का दूसरा दानी दुनिया में नहीं है.

****** अच्छे काम काम का फैसला लेने के बाद ज्यादा सोच विचार उसे कमजोर करता है.*******

Saturday, January 15, 2011

अज्ञानी और मूर्ख का फर्क

एक बार महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ बैठे हुए थे. शिष्य उनसे अपने अपने मन में उठने वाले सवाल कर रहे थे. और महात्मा बुद्ध उनका जवाब दे रहे थे. अचानक ज्ञान की बात चल पड़ी. एक शिष्य ने कहा की कुछ लोग कितने मुर्ख होते हैं की कुछ भी नही जानते और पूरा जीवन यूँ ही गुजार देते हैं. इस पर महात्मा बुद्ध ने कहा की वो लोग मुर्ख नही अज्ञानी होते हैं. शिष्यों को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने पूछा की भगवन क्या अज्ञानी और मुर्ख में फर्क होता है. इस पर महात्मा बुद्ध ने उनकी शंका का समाधान करते हुए कहा की एक अज्ञानी व्यक्ति वह होता है जिसको ज्ञान का अभाव होता है, परन्तु मुर्ख वह होता है जो दूसरों को मुर्ख बनाता है और  इस पर यकीन भी करता है की वो मुर्ख बन रहा है.जब तुम किसी को मुर्ख बनाने की कोशिश करते हो तो वह इस बात को जानता होता है, परन्तु कई बार वह इसको प्रकट नही करता. सभी शिष्यों के मुख पर मुस्कान फ़ैल गई.

******* ऐसी मुर्खता हम कितनी बार करते हैं. **********

Friday, January 14, 2011

दोड़ प्रतियोगिता

एक बार जंगल के सभी जानवरों ने सोचा की पुराने समय की तरह एक बार फिर से कछुए और खरगोश की दोड़ करवानी चाहिए. उन्होंने पहले खरगोश से बात की. खरगोश झट से तैयार हो गया. उसने सोचा की यह अच्छा अवसर है जब वो अपने पूर्वजों की बेइज्जती का बदला ले सकता है. उसके बाद सभी जानवरों ने कछुए से बात की. परन्तु कछुए ने कोई उत्साह नहीं दिखाया. परन्तु जानवर इस बात पर अड़े हुए थे और उन्होंने प्रतियोगिता की तारीख घोषित कर दी. प्रतियोगिता के दिन खरगोश तैयार हो कर स्थल पर पहुंच गया. उसके बाद कुछ जानवर कछुए को भी घर से ले आए. ठीक समय पर सीटी बजी और खरगोश तेजी से भाग गया. कछुआ आराम से चलने लगा. सभी जानवर वहां से कई मील दूर जहाँ दोड़ खत्म होनी थी वहां पहुंच कर दोनों का इंतजार करने लगे. थोड़ी देर बाद खरगोश पसीने से लथपथ वहां पहुंच गया. उसके बाद सभी कछुए का इंतजार करने लगे. परन्तु कछुआ वहां नही पहुचा. शाम तक इंतजार करने के बाद सभी जानवर ये देखने के लिए की आखिर बात क्या है कछुए के घर पहुंचे. वहां देखा कछुआ घर के सामने चबूतरे पर बैठा आराम से चाय पी रहा है. जानवरों को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने दोड़ में भाग न लेने का कारण पूछा. कछुए ने कहा की निश्चित परिणाम मालूम होने के बावजूद उस प्रतियोगिता में भाग लेने की बजाए उसने कुछ दुसरे जरूरी काम निपटाना ठीक समझा. उसे अपने पूर्वजों की मेहनत पर पानी फेरने का क्या हक है? यह जवाब सुनकर सभी जानवर अपने अपने घर चले गये.

*******बड़े सपने देखना अच्छी बात है,परन्तु अव्यवहारिक लक्ष्य हमेशा निराशा पैदा करता है.सफलता के लिए हमेशा व्यावहारिक लक्ष्य सामने रखो और पूरी मेहनत से काम करो.****************

Thursday, January 13, 2011

घास का व्यापार

एक बार मुल्ला नसीरूदीन अपने गधों पर घास के गट्ठर लाद कर पडोस के राज्य में बेचने गया .उस राज्य के कस्टम अधिकारी बहुत सख्त थे.उन्होने सारे गट्ठर खोल कर अच्छी तरह जाँच की.फिर उसे जाने दिया. इस तरह हररोज मुल्ला नसीरूदीन अपने गधों पर घास के गट्ठर लाद कर वहां बेचने जाता. अधिकारी उसकी अच्छी तरह जाँच करते परन्तु उन्हें कुछ नही मिलता. इस तरह कई महीने गुजर गये. एक दिन परेशान हो कर उन अधिकारिओं ने मुल्ला से पूछा की मुल्ला, आप इन घास के गट्ठरों में क्या छुपाकर ले जाते हो जो  हमे आज तक नहीं मिला. मुल्ला नसीरूदीन ने जवाब दिया की मैं घास का नहीं, बल्कि गधों का व्यापार करता हूँ. तुम घास छानते रहते हो और मैं गधे बेचकर आ जाता हूँ.

***** बहुत बार चीजें वैसी नहीं होती जैसी पेश  की जाती हैं. इसलिए सचेत नागरिक को हुकुमत के फैसलों के पीछे छिपे असली कारण देख लेने चाहिएं.******

Wednesday, January 12, 2011

मुर्खता

एक जंगल में एक शेर रहता था.वह हररोज बहुत से जानवर मार देता था.इसलिए सभी जानवरों ने सलाह करके हररोज एक जानवर उसके पास भेजने का फैसला किया . और एक दिन खरगोश का नम्बर आया . खरगोश ने अपने पूर्वजों की कहानी सुनी हुई थी.वह देर से शेर के पास पहुंचा . शेर ने उससे देर से आने का कारण पूछा. तो खरगोश ने कहा की उसे एक दूसरा शेर मिल गया था, और वह बड़ी मुश्किल से यहाँ तक आया है . इसलिए आप एक बार चलकर उससे बात कर लीजिए . शेर बहुत जोर से हंसा और बोला क्या मुझे इतना मुर्ख समझता है . पुराणी कहानी मैंने भी सुनी हुई है . इतना कहकर शेर ने खरगोश को मारकर खा लिया .

 ****लक्ष्य सामने हो तो अपने प्रतिद्वंदी से उलझने की मुर्खता नहीं करनी चाहिए ****

परिस्थिति के अनुसार निर्णय

 एक बार एक कव्वा था. वह बहुत प्यासा था .तभी उसे एक बाग दिखाई दिया .उसमे एक घडा रखा था.कव्वे ने देखा की उसमे बहुत कम पानी है .कव्वा बहुत परेसान हुआ . तभी उसे अपने पूर्वजों की कथा याद आई .उसने आसपास देखा और पास में पड़े पत्थर उठा कर उसमे डालने लगा. जब बहुत से पत्थर डल गये तो उसने घड़े में झांककर देखा .घड़े में जो थोडा बहुत पानी था वह पत्थरों ने चूस लिया था. और अब उसमे थोडा भी पानी नहीं बचा था.कव्वा बहुत निरास हुआ और उसे अपने पूर्वजों पर बहुत गुस्सा आया .अंत में उसे प्यासा ही जाना पड़ा.

    *****   बिना परिस्थिति देखे पुराने फैसले लागु करना हानिकारक होता है *****