Sunday, February 13, 2011

फैज अहमद फैज की बरसी पर छोटी सी श्रद्धांजली !

यूँ ही उलझती रही है हमेशा जुल्म से खल्क,
                                  न उनकी रस्म नई है न अपनी रीत नई !
यूँ ही खिलाये हैं हमने हमेशा आग में फूल,
                                   न उनकी हार नई है न अपनी जीत नई !

       इन शब्दों के रचयिता और महान क्रन्तिकारी शायर फैज अहमद फैज को उनकी बरसी पर छोटी सी श्रद्धांजली !

मिश्र  की घटनाओं ने फिर फैज  को सही साबित किया ! फैज ने कभी भी भारत और पाकिस्तान के बंटवारे को स्वीकार नही किया! वह इसे साम्राज्यवादी और साम्प्रदायिक ताकतों की साजिश मानते थे ! बंटवारे के बाद सालों पाकिस्तान की जेलों में रहे !

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