यूँ ही उलझती रही है हमेशा जुल्म से खल्क,
न उनकी रस्म नई है न अपनी रीत नई !
यूँ ही खिलाये हैं हमने हमेशा आग में फूल,
न उनकी हार नई है न अपनी जीत नई !
इन शब्दों के रचयिता और महान क्रन्तिकारी शायर फैज अहमद फैज को उनकी बरसी पर छोटी सी श्रद्धांजली !
मिश्र की घटनाओं ने फिर फैज को सही साबित किया ! फैज ने कभी भी भारत और पाकिस्तान के बंटवारे को स्वीकार नही किया! वह इसे साम्राज्यवादी और साम्प्रदायिक ताकतों की साजिश मानते थे ! बंटवारे के बाद सालों पाकिस्तान की जेलों में रहे !
न उनकी रस्म नई है न अपनी रीत नई !
यूँ ही खिलाये हैं हमने हमेशा आग में फूल,
न उनकी हार नई है न अपनी जीत नई !
इन शब्दों के रचयिता और महान क्रन्तिकारी शायर फैज अहमद फैज को उनकी बरसी पर छोटी सी श्रद्धांजली !
मिश्र की घटनाओं ने फिर फैज को सही साबित किया ! फैज ने कभी भी भारत और पाकिस्तान के बंटवारे को स्वीकार नही किया! वह इसे साम्राज्यवादी और साम्प्रदायिक ताकतों की साजिश मानते थे ! बंटवारे के बाद सालों पाकिस्तान की जेलों में रहे !
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