शुक्रवार, 5 जुलाई 2024

कल और आज

 आज फिर हर रोज़ वाले मित्र से मुलाक़ात हुई ।

वो आज भी हर रोज़ की तरह परेशान था । उसकी परेशानियों के वही कारण थे जो अमूमन होते थे । लेबर की समस्या है, प्रोडक्शन टाइम पर नहीं हो रहा है, पार्टियाँ ख़राब हो जायेंगी , बिजली की सप्लाई भी अनियमित है , लड़का काम में ध्यान नहीं देता इत्यादि इत्यादि ।

आज मैंने सोचा उससे बैठकर बात की जाये । मैंने उसे पास के पार्क में कुछ देर बैठने के लिये कहा । उसके चेहरे पर जल्दबाज़ी के भाव थे लेकिन वो मेरे साथ पार्क में चला गया । हम दोनों एक बैंच पर बैठ गये ।

क्या परेशानी है ? मैंने उससे पूछा ।

परेशानी कोई एक हो तो बताऊँ , यहाँ तो कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है । उसने लगभग हताश स्वर में कहा ।

मैंने उसे कहा क्या इस समय को पहचानते हो ?

इस समय मतलब ?

मतलब ये समय जिसमे हम बैठे हैं । मैंने कहा ।

मैं कुछ समझा नहीं । उसने पूछने के अन्दाज़ में कहा ।

मैंने कहा, मैं इस समय की बात कर रहा हूँ, आज की अभी कि । याद करो ये वही कल है जिसके लिए तुम कल इतना परेशान थे । क्या तुम्हें नहीं लगता की इस आज के लिए कल तुम्हारी परेशानी व्यर्थ थी ? 

बात तो तुम्हारी ठीक है । उसने आश्चर्य के साथ कहा ।

तो समझ लो आने वाले कल के लिए जो तुम आज परेशान हो रहे हो वो भी उसी तरह व्यर्थ है । मैंने कहा ।

ठीक है भाई साहब लेकिन जीवन में परेशानियाँ तो होती हैं न । उसने कहा ।

जीवन में परेशानियाँ नहीं समस्याएँ होती हैं जिनमे से बहुतों का हल निकाला जा सकता है सही प्लानिंग से, विचार से , बहुत कम समस्याएँ ऐसी होती हैं जिनका समाधान हम अपनी इच्छा अनुसार नहीं ढूँढ सकते, और परेशान होकर तो बिलकुल भी नहीं । मैंने कहा ।

बात तो आपकी ठीक ही है । उसने कहा । अब उसके चेहरे से परेशानी के भाव कम हो गये थे ।

सोमवार, 27 अगस्त 2012

DOSTI


DOSTI
Ek hichkhichahat bhari shuruaat si hoti hai,
Kabhi darr ke sath to kabhi yunhi
achanak kisi,Se baat si hoti hai.

Har koi nahi hota dil ke itna karib,
Bas kisi-kisi se hi aisi
pehchan,Si hoti hai.

Bina soche samjhe ho jati hai Dher sari baetein,
Fir unhi baaton ke liye ek
Intzaar si hoti hai.

Bina miley hi ban jaate hai kai Khoobsurat lamhe,
Kabhi milkar bhi kuch anjaan
Si hoti hai.

Aisi hi hoti hai ye hamari dosti
Jo kabhi sath to kabhi ek
Yaad si hoti hai.
     
                                       ----Ekta.

सोमवार, 4 अप्रैल 2011

હું ક્યાં કહું છું આપની હા હોવી જોઈએ

આ મહોબત છે કે છે એની દયા કહેતા નથી
એક મુદ્દત થઇ કે તેઓ હા કે ના કહેતા નથી
બે જણા  દિલ થી મળે તો મજલીસ છે “મરીઝ “
દિલ વિના લાખો મળે એને સભા કહેતા નથી
હું ક્યાં કહું છું આપની હા હોવી  જોઈએ,
પણ ના કહો છો એમાં વ્યથા હોવી જોઈએ
પુરતો નથી નસીબ નો  આનંદ ઓ ખુદા,
મરજી મુજબની થોડી મજા હોવી જોઈએ
એવી બે-દિલી થી મને માફ ના કરો,
હું ખુદ કહી ઉઠું કે સજા હોવી જોઈએ
મેં એનો પ્રેમ ચાહ્યો બહુ સાદી રીત થી,
નહોતી ખબર કે એમાં કલા હોવી જોઈએ
પૃથ્વી ની આ વિશાળતા અમથી નથી ‘મરીઝ’
એના મિલન ની ક્યાંક જગા હોવી જોઈએ
- “મરીઝ”

शनिवार, 26 मार्च 2011

क्षमता

ओ                             
निष्ठुर प्रकृति 
अट्टहास न कर
अपनी संहार की क्षमता पर 
नही जीत पायेगी तू
मनुष्य से 
भयंकर भूकम्प 
विनाशकारी बाढ़ 
कभी ज्वालामुखी 
कभी तूफ़ान
लेकिन क्या हुआ,
जापान में क्या तू पहुंच पाई
उस संख्या तक 
जो मनुष्य ने बनाई थी 
हिरोशिमा और नागाशाकी में 
हर साल तू लाती है बाढ़
परन्तु उससे ज्यादा मार देता है मनुष्य 
अनाज को गोदामों में दबाकर
भूख से
पूरी सदी में 
जितने मारे तूने 
अपने सारे कारनामो से 
उससे ज्यादा तो मनुष्य ने मार दिए 
इराक पर दवाइयों के प्रतिबंध से
तू समझती है 
भयंकर बिमारिओं से 
तूने मारे लाखों लोग 
हा हा हा 
बहुत भोली है तू 
उन्हें मनुष्य ने मारा 
उनको दवाइयों की पहुंच से बाहर करके 
तू कितनी ही कोशिश कर 
तू 
मुकाबला नही कर सकती मनुष्य की क्षमता का 
हर रोज मार रहा है मनुष्य
हजारों को 
कभी धर्म 
कभी जाती 
कभी लोकतंत्र की स्थापना के नाम पर 
ये खामोश मोतें 
जो किसी गिनती में नही हैं

गुरुवार, 17 मार्च 2011

हम --[एक निरंतर कविता ]

गणतन्त्र दिवस हम फिर मना रहे हैं ,
बंधुवा लोगों को आजाद   बता रहे हैं,

हक  मांगने  वालों पर गोली चलाई हमने,
मरहम लगा कर हम ही शाबाशी पा रहे हैं.

जनता की हालत क्या है, मालूम नही है हमको,
विकाश   बहुत  किया  है,  कागज  बता  रहे  हैं.

कानून  और  व्यवस्था  की  स्थिति ठीक है,
गली गली  में  फिर से  कर्फ्यू  लगा  रहे  हैं.

भगत सिंह हो  या गाँधी,  नासमझ  थे   सारे,
उन्होंने जिन्हें भगाया, उन्हें वापिस ला रहे हैं.

हम वीरों के वारिश हैं और ऋषियों की सन्तान हैं,
कहीं  बेटियां  मार रहे हैं,  कहीं  बहुएं  जला रहे हैं.

सारी दुनिया हमारी  ऋणी  थी, है  और रहेगी,
इसलिए  धन  विदेशों  में  जमा  करा  रहे  हैं.

हमारा मुकाबला कोई कर ही नही सकता,
सोलहवीं  सदी  से  इक्कीसवीं में जा रहे हैं.




शनिवार, 12 मार्च 2011

नो फ्लाई ज़ोन

गिद्धों के राजा ने 
जारी किया है फरमान 
की अबसे 
कुछ पक्षिओं के आकाश में उड़ने पर 
पाबंदी रहेगी !
क्योंकि 
उनके आकाश में उड़ने से 
असुविधा होती है
साँपों को 
उनका शिकार करने में,
साँपों के साथ 
समझौता है उनका
और फिर कुछ दिन
साँपों को सुविधा हो गयी 
शिकार की,
परन्तु 
थोड़े दिन के बाद 
फिर घटने लगी
साँपों की संख्या 
साँपों की पंचायत के मुखिया ने
बैठाई है जाँच
और इस जाँच में 
गिद्धों पर शक करने की मनाही है
कुछ सांप 
जो खाते हैं 
छोटे साँपों को 
वो भी 
जाँच के दायरे से बाहर हैं
और हम 
इंतजार कर रहे हैं
उस दिन का 
जब इन पक्षियों में से कुछ 
बाज बन जाएँ 
और 
चुनौती दें
मरे हुए ढोरों पर पलने वाले 
गिद्धों को 
ताकि
फिर किसी खुले आसमान को 
साँपों की सुविधा के लिए 
'' नो फ्लाई ज़ोन ''
न बनाया जा सके !

























सोमवार, 7 मार्च 2011

शाहिर लुधियानवी की जयंती पर

     शाहिर की शायरी --खून फिर खून है!

जुल्म फिर जुल्म है, बढ़ता है तो मिट जाता है 
खून  फिर  खून  है,  टपकेगा तो जम जायेगा 

खाक -ए-सहरा पे जमे या कफे कातिल पे जमे,
रू-ए-इंसाफ   पे  या   पाए-सलासिल    पे जमे,
तेगे-बेदाद   पे  या  लाशा -ए-बिस्मिल  पे जमे,
खून  फिर  खून  है,  टपकेगा तो जम जायेगा

लाख  बैठे  कोई  छुप छुप  के  कमींगाहों में ,
खून खुद देता है जल्लादों के मस्कन का सुराग,
साजिशें लाख ओढाती रहें जुल्मत की नकाब,
लेके  हर बूंद  निकलती  है  हथेली  पे  चिराग. 

जुल्म की किस्मते-नाकारा-ओ-रुसवा से कहो,
जब्र  की  हिकमते-पुरकार  के  ईमा  से  कहो,
महमिले-मजलिसे-अकवाम की लैला से कहो,
खून  दीवाना  है  दामन  पे  लपक  सकता  है,
शोला-ए-तुंद है खिरमन पे लपक सकता है.

तुमने जिस खून को मकतल में दबाना चाहा,
आज वो कूचा-ए-बाजार में आ निकला है,
कहीं शोला कहीं नारा कहीं पत्थर बन कर,
खून  चलता है तो रुकता नहीं संगीनों से,
सर  उठता  है  तो  दबता  नहीं  आइनों  से.

जुल्म की बात ही क्या,जुल्म की औकात ही क्या,
जुल्म बस जुल्म है, आगाज से अंजाम तलक ,
खून फिर  खून  है  सो  शक्ल  बदल  सकता  है,
ऐसी  शक्लें  की  मिटाओ  तो  मिटाए  न  बने ,
ऐसे  शोले  की  बुझाओ  तो  बुझाए  न    बने,
ऐसे   नारे   की  दबावों  तो   दबाये    न   बने.