Saturday, March 26, 2011

क्षमता

ओ                             
निष्ठुर प्रकृति 
अट्टहास न कर
अपनी संहार की क्षमता पर 
नही जीत पायेगी तू
मनुष्य से 
भयंकर भूकम्प 
विनाशकारी बाढ़ 
कभी ज्वालामुखी 
कभी तूफ़ान
लेकिन क्या हुआ,
जापान में क्या तू पहुंच पाई
उस संख्या तक 
जो मनुष्य ने बनाई थी 
हिरोशिमा और नागाशाकी में 
हर साल तू लाती है बाढ़
परन्तु उससे ज्यादा मार देता है मनुष्य 
अनाज को गोदामों में दबाकर
भूख से
पूरी सदी में 
जितने मारे तूने 
अपने सारे कारनामो से 
उससे ज्यादा तो मनुष्य ने मार दिए 
इराक पर दवाइयों के प्रतिबंध से
तू समझती है 
भयंकर बिमारिओं से 
तूने मारे लाखों लोग 
हा हा हा 
बहुत भोली है तू 
उन्हें मनुष्य ने मारा 
उनको दवाइयों की पहुंच से बाहर करके 
तू कितनी ही कोशिश कर 
तू 
मुकाबला नही कर सकती मनुष्य की क्षमता का 
हर रोज मार रहा है मनुष्य
हजारों को 
कभी धर्म 
कभी जाती 
कभी लोकतंत्र की स्थापना के नाम पर 
ये खामोश मोतें 
जो किसी गिनती में नही हैं

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